सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

पटना ,२८-२९ नवम्बर .पटना विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग तथा साहित्य अकादमी के तत्वाधान में 'दलितकी समस्याएं ' विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई .यह दो दिवसीय कार्यक्रम पञ्च सत्रों में संपन्न हुआ .
उद्घाटन सत्र में वक्तव्य देते हुए वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ तिवारी ने इस संगोष्ठी को पटना में किया जाना एक बड़ी घटना के रूप में चिन्हित किया . प्रथम दलित हीरा डोम (पटना )का जिक्र करते हुए कहा की बुद्ध की इसी धरती से वर्ण- व्यवस्था के विरुद्ध पहली लड़ाई लड़ी गई थी ।
वर्ग-विहीन समाज की स्थापना ही दलित साहित्य का मकसद है.इस व्यवस्था ने दलितों को अलग किया लिहाजा दलित लेखन इस व्यवस्था को नकारता है .ये बाते मराठी लेखक लक्ष्मण गायकवाड ने कहीं .
अपने अध्यक्षीय भाषण में पटना विश्व विद्यालय के कुलपति श्याम लाल ने सामाजिक व्यवस्था एवं दलित लेखन के कारणों की पड़ताल की . दलितों के भीतर संघर्ष शक्ति पैदा हुई जिसको लेखन के द्वारा अभिव्यक्ति मिल रही है .कन्नड़ लेखक तेजस्वी कट्टीमनी ने कहा की यह साहित्य परंपरागत साहित्य बोध को चुनौती दे रहा है .
अगले सत्र में शरण कुमार लिम्बाले ने कहा की दलित भी इन्सान हैं और उन्हेंभी इंसाफ चाहिए .प्रत्येक धर्म और भाषा के साहित्यकार को मिलकर लिखना चाहिए .यह बात सकारात्मक दृष्टिकोण को व्यक्त करता है साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र और इतिहास लेखन